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छोटे छोटे दुःख

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2906
आईएसबीएन :81-8143-280-0

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जिंदगी की पर्त-पर्त में बिछी हुई उन दुःखों की दास्तान ही बटोर लाई हैं-लेखिका तसलीमा नसरीन ....

उत्तराधिकार-2


मुसलमानों के उत्तराधिकर के बारे में, मैं लिख चुकी हूँ, जहाँ औरतों को निर्लज्ज तरीके से ठगा जाता है। औरतों को सिर्फ इस्लाम धर्म में ही नहीं ठगा गया है, सभी धर्मों में लगभग यही हालत है! बंगलादेश की हिंदू धर्मावलंबी लड़कियाँ निग्रह की क्या कम शिकार हैं? हिंदू उत्तराधिकार कानून में तो किस्म क़िस्म के कानून प्रचलित हैं! एक मितक्षरा और दायभाग! बंगलादेश और भारत के पश्चिम बंगाल, आसाम, त्रिपुरा और मणिपुर प्रदेशों में, अधिकांश हिंदू संप्रदाय, दायभाग उत्तराधिकार कानून द्वारा शासित हैं और वे लोग दायभाग नीति का ही अनुसरण करते हैं! दायभाग कानून में एक हिंदू अपनी समूची पैतृक संपत्ति और अपनी मेहनत से अर्जित अन्यान्य संपत्ति का पूर्णतः मालिक है! अपने जीते-जी वह अपनी संपत्ति, चाहे जिस भी तरह से हस्तांतर कर सकता है।

दायभाग कानून मुताबिक मृत व्यक्ति के तीन वर्गों के उत्तराधिकारी होते ग्रहण करता है और जो व्यक्ति पिंडदान में हिस्सा लेता है-वे सब परस्पर 'सपिंड' होते हैं! जो रिश्तेदार, मृत व्यक्ति के श्राद्ध के समय, पिंड पर लेप करते हैं, वे सब मृत व्यक्ति के 'साकुल्य' होते हैं और जो रिश्तेदार, मृत व्यक्ति के श्राद्ध में पिंड पर जल चढ़ाते हैं, वे लोग मृतक के 'समानोदक' होते हैं।

पितृकुल की तीन पीढ़ी, यथा पिता, पितामह और प्रपितामह और मातृकुल की तीन पीढ़ी, यथा माँ का पिता, पिता का पिता और पिता के पिता के पिता को 'सपिंड' माना जाता है, क्योंकि मृत व्यक्ति को अपने जीवनकाल में उन लोगों को पिंडदान करना ही पड़ता। मृत व्यक्ति के श्राद्ध में, पिंडदान के दौरान जिन लोगों को पिंडदान करना ही पड़ता है, वे सब मृत व्यक्ति के सपिंड होते हैं! ये सभी सपिंड हैं-पुत्र की तरफ से पुत्र, पुत्र के पुत्र, पुत्र के पुत्र के पुत्र और बेटी की तरफ से बेटी का पुत्र, पुत्र की बेटी का पुत्र, पुत्र के पुत्र का पुत्र! मृत व्यक्ति के अलावा वे तमाम लोग जो मृत व्यक्ति के पूर्वपुरुषों का पिंडदान करते रहे हैं, वे लोग भी मृत व्यक्ति के सपिंड होते हैं।

दायभाग उत्तराधिकार कानून के मुताबिक सपिंड के अग्राधिकार के आधार पर क्रम कुछ यूँ है-

1. पुत्र 2. पौत्र 3. प्रपौत्र 4. विधवा पत्नी-अगर पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र, जिंदा न हों, तो 5. बेटी-पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र और विधवा पत्नी जीवित न हों, तो वह मृत पिता की छोड़ी हुई संपत्ति की उत्तराधिकारी होगी। बदचलन, बाँझ, पुत्रहीना और जिस बेटी को सिर्फ बेटी ही बेटी हैं, ऐसी औरत पिता की संपत्ति की उत्तराधिकरी नहीं हो सकती। 6. बेटी का बेटा-बेटी की मौत के बाद, बेटी का पुत्र सपिंड के तौर पर मृत व्यक्ति की छोड़ी हुई जायदाद का पूर्णतः मालिक होता है। 7. पिता 8. माँ-दायभाग उत्तराधिकार कानून के मुताबिक बदचलन माँ, मृत पुत्र की संपत्ति की उत्तराधिकारी नहीं हो सकती। 9. भाई 10. भाई का बेटा 11. भाई के बेटे का बेटा 12. बहन का बेटा 13. पिता का पिता 14. पिता की माँ 15. पिता का भाई 16. उसका पुत्र 17. उसका पौत्र 18. पिता की बहन का पुत्र 19. पिता के पिता का पिता 20. पिता के पिता की माँ 21. पिता का फूफा 22. उसका बेटा 23. उसका पौत्र 24. पिता के पिता की बहन का पुत्र 25. पुत्र की कन्या का पुत्र 26. पुत्र के पुत्र की कन्या का पुत्र 27. भाई के पुत्र की कन्या का पुत्र 28. फूफा की कन्या का पुत्र 29. फूफा के पुत्र की कन्या का पुत्र 30. पिता के फूफा की कन्या का पुत्र 31. पिता के फूफा के पुत्र की बेटी का पुत्र 32. माँ का पिता 33. माता का भाई 34. उसका पुत्र 35. उसका पौत्र 36. माँ की बहन का पुत्र 37. माँ के पिता का पिता 38. उसका पुत्र 39. उसका पौत्र 40. उसका प्रपौत्र 41. उसकी बेटी का बेटा 42. माता के पिता के पिता का पिता 43. उसका पुत्र 44. उसका पौत्र 45. उसका प्रपौत्र 46. उसकी बेटी का पुत्र 47. माँ के पिता के पुत्र की बेटी का पुत्र 48. उसके पुत्र के पुत्र की बेटी का पुत्र 49. माँ के पिता के पिता के बेटे की बेटी का पुत्र 50. उसके पुत्र के पुत्र की बेटी का पुत्र 51. माँ के पिता के पिता के पिता की बेटी का पुत्र 52. उसके पुत्र के पुत्र की बेटी का पुत्र!

ये बावन लोग सपिंड हैं यानी तब उत्तराधिकारी कौन है? सभी पिता, पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र हैं। बीवी, बेटी, माता को संपत्ति तभी मिलती है, जब कोई मर्द उत्तराधिकारी जीवित न हो, वह भी सैकड़ों शर्तों पर मिलती है। औरत अगर बदचलन, बाँझ या पुत्रहीना हुई, तो उसे संपत्ति नहीं मिल सकती। पिता, पुत्र, पौत्र अगर चरित्रभष्ट भी हों, तो भी वे संपत्ति के अधिकारी हैं। सारा एतराज सिर्फ औरत के बारे में है! क्रमानुसार उत्तराधिकारियों के परिचय पर गौर किया जाए, तो कोई भी इंसान अगर वह सच ही इंसान है, तो वह ज़रूर चकित होगा, क्योंकि पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र वगैरह ही संपत्ति पाते रहते हैं, तब तक औरत जिंदा ही नहीं रहती, विधवा औरत भी बची नहीं रहती यानी उन लोगों को संपत्ति नसीब हो, इसकी कोई संभावना नहीं बच रहती। इसके बाद, बेटी का बेटा, हालांकि लाइन में खड़ा होता है। बहन का बेटा भी हक़दार होता है। लेकिन बहन, बहन की बेटी, बहन की बेटी की वेटी उस हिस्सेदारी में गायब होते हैं! पिता का भाई, उसका बेटा, उसका पोता तो कतार में होता है, लेकिन पिता की बहन या उसकी बेटी उत्तराधिकार की सूची में नहीं है! यहाँ तक कि पिता का फूफा-काका, उनके बेटे, उनके पोते, पिता के पिता की बहन का बेटा, बेटे की बेटी का पुत्र तक उस फेहरिस्त में शामिल हैं। मगर काका-फूफा की कोई बेटी हक़दार नहीं होती, पिता के पिता की बहन की बेटी भी नहीं या बेटे की बेटी की बेटी भी नहीं! माँ का भाई, पिता, मामा का बेटा, पोता, परपोता भी संपत्ति में हिस्सेदार हो सकते हैं। लेकिन माँ की बहन, माँ, मामा की बेटी, नातिनों का कोई हक नहीं होता। जायदाद किसी भिन्न गोत्र में भले चली जाए, मगर किसी औरत को हरगिज नहीं मिल सकती। माँ की बहन को हिस्सा नहीं मिलेगा, लेकिन माँ की बहन का पुत्र ज़रूर हक़दार है! माँ के पिता के पिता के पुत्र की बेटी को कुछ नहीं मिलेगा, हाँ उस बेटी के बेटे को हिस्सा ज़रूर मिलेगा। उत्तराधिकार का यह नमूना ही क्या जाहिर नहीं करता कि औरत के मुकाबले मर्द का आधिपत्य, प्रभाव, मर्दो की ज़ोर-ज़बर्दस्ती और धृष्टता है?

साकुल्य और समानोदक भी पिता के पिता, तस्य पिता, बेटे के बेटे, उसके बेटे, उसके पोते-परपोते ही हक़दार होते हैं। इस उत्तराधिकार तालिका में औरत का नामोनिशान तक नहीं है। औरत कुछ भी पाने की हक़दार नहीं है। सिर्फ देने के लिए है! लोग-बाग सोचते हैं कि औरत को धन-दौलत, ज़मीन-जायदाद की भला क्या ज़रूरत? उसे तो पिता-पति-पुत्र के अधीन बस, जीते रहना है। आश्रित लता की तरह पुरुष के अंग से लिपटे रहना है। औरत को स्वाधीन और स्वावलंबी बनने देने में, समाज बेतरह नाराज़ होता है! समाज ने उसे हर मायने में निःस्व कर डाला है, उसे अचल और अनाथ बना दिया है।


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    अनुक्रम

  1. आपकी क्या माँ-बहन नहीं हैं?
  2. मर्द का लीला-खेल
  3. सेवक की अपूर्व सेवा
  4. मुनीर, खूकू और अन्यान्य
  5. केबिन क्रू के बारे में
  6. तीन तलाक की गुत्थी और मुसलमान की मुट्ठी
  7. उत्तराधिकार-1
  8. उत्तराधिकार-2
  9. अधिकार-अनधिकार
  10. औरत को लेकर, फिर एक नया मज़ाक़
  11. मुझे पासपोर्ट वापस कब मिलेगा, माननीय गृहमंत्री?
  12. कितनी बार घूघू, तुम खा जाओगे धान?
  13. इंतज़ार
  14. यह कैसा बंधन?
  15. औरत तुम किसकी? अपनी या उसकी?
  16. बलात्कार की सजा उम्र-कैद
  17. जुलजुल बूढ़े, मगर नीयत साफ़ नहीं
  18. औरत के भाग्य-नियंताओं की धूर्तता
  19. कुछ व्यक्तिगत, काफी कुछ समष्टिगत
  20. आलस्य त्यागो! कर्मठ बनो! लक्ष्मण-रेखा तोड़ दो
  21. फतवाबाज़ों का गिरोह
  22. विप्लवी अज़ीजुल का नया विप्लव
  23. इधर-उधर की बात
  24. यह देश गुलाम आयम का देश है
  25. धर्म रहा, तो कट्टरवाद भी रहेगा
  26. औरत का धंधा और सांप्रदायिकता
  27. सतीत्व पर पहरा
  28. मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं
  29. अगर सीने में बारूद है, तो धधक उठो
  30. एक सेकुलर राष्ट्र के लिए...
  31. विषाद सिंध : इंसान की विजय की माँग
  32. इंशाअल्लाह, माशाअल्लाह, सुभानअल्लाह
  33. फतवाबाज़ प्रोफेसरों ने छात्रावास शाम को बंद कर दिया
  34. फतवाबाज़ों की खुराफ़ात
  35. कंजेनिटल एनोमॅली
  36. समालोचना के आमने-सामने
  37. लज्जा और अन्यान्य
  38. अवज्ञा
  39. थोड़ा-बहुत
  40. मेरी दुखियारी वर्णमाला
  41. मनी, मिसाइल, मीडिया
  42. मैं क्या स्वेच्छा से निर्वासन में हूँ?
  43. संत्रास किसे कहते हैं? कितने प्रकार के हैं और कौन-कौन से?
  44. कश्मीर अगर क्यूबा है, तो क्रुश्चेव कौन है?
  45. सिमी मर गई, तो क्या हुआ?
  46. 3812 खून, 559 बलात्कार, 227 एसिड अटैक
  47. मिचलाहट
  48. मैंने जान-बूझकर किया है विषपान
  49. यह मैं कौन-सी दुनिया में रहती हूँ?
  50. मानवता- जलकर खाक हो गई, उड़ते हैं धर्म के निशान
  51. पश्चिम का प्रेम
  52. पूर्व का प्रेम
  53. पहले जानना-सुनना होगा, तब विवाह !
  54. और कितने कालों तक चलेगी, यह नृशंसता?
  55. जिसका खो गया सारा घर-द्वार

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